Secret Knowledge Of Gita...
🎋 "गीता सार"👇
गीता जी अ .11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन कह रहा है कि भगवन् ! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान कर रहे हैं। हे सहस्त्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले भगवान ! आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकराल रूप को देखकर धीरज नहीं कर पा रहा हूँ ।
अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘
पवित्र गीता जी के ज्ञान को यदि श्री कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रकट हुआ हूँ।
गीता जी अ.11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था।
श्री कृष्ण जी काल नहीं थे, उनके दर्शन मात्र से मनुष्य, पशु (गाय आदि) प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी के पास आकर प्यार पाते थे।
गीता ज्ञान दाता अर्जुन से कह रहा है कि अर्जुन मेरी शरण में रहेगा तो भक्ति भी करनी होगी और युद्ध भी करना होगा अगर इस लोक से छुटकारा चाहते हो और पूर्ण मोक्ष व सास्वत स्थान (अमर लोक) प्राप्त करना चाहते हो तो गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में संकेत है कि पूर्ण ज्ञान (तत्व ज्ञान) के लिए तत्वदर्शी संत के पास जा, मुझे पूर्ण ज्ञान नहीं है।
🎋गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए।
जहां जाने के पश्चात साधक लौटकर वापिस नहीं आता अर्थात मोक्ष प्राप्त करता है।
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