पवित्र शास्त्रों के विरुद्ध साधना करना व्यर्थ है।
पवित्र गीता जी जो चारों वेदों का सारांश है। और गीता जी के अध्याय 16 के श्लोक 23 में लिखा है कि शास्त्रविधि को त्यागकर जो मनमाना आचरण करते हैं, उनको न कोई सुख मिलता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और ना ही पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।
क्योंकि:- यह गलत साधना होने के कारण व्यर्थ है।
हमारी भक्ति शास्त्रानुकूल न होने के कारण हमारे पुण्य कम और पाप अधिक बनते हैं। क्योंकि:-हमें तत्वदर्शी संत नहीं मिलने के कारण पवित्र शास्त्रों का अध्यात्मिक ज्ञान सही नहीं मिल पाता और ना ही "सूक्ष्म वेद का तत्वज्ञान" तत्वदर्शी संत बिना कोई बता सकता है।
हमारे समाज में जो नकली धर्मगुरु शास्त्रों के विरुद्ध साधना बताते हैं जिन से कोई लाभ नहीं मिलता है, बल्कि दिनों दिन अधिक दु:खी होते हैं।तो जगत के लोग भी दु:खी व्यक्तियों को सलाह देते रहते हैं कि बुझा निकलवा लो उसके पास चले जाओ उस देवता की फेरी लगाओ ऐसा करो,वैसा करो,व्रत करो दान करो पुण्य करो सब बताते हैं। लेकिन उनसे कोई लाभ नहीं होता तो वह दु:खी आदमी कहने लग जाता है कि मैंने सभी देवी-देवताओं और भगवान की बहुत पूजा-पाठ की है लेकिन कोई लाभ नहीं मिला शायद भगवान है ही नहीं और हम नास्तिकता की ओर चल पड़ते हैं।जिससे मानव जन्म मिला हुआ व्यर्थ चला जाता है।
तो आओ हम इसका समाधान
पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि अर्जुन तेरे लिए कर्तव्य, अकर्तव्य के लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं।
इसलिए गीता शास्त्र के अनुसार समाधान:-⤵
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में स्पष्ट किया है कि यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों का ज्ञान स्वयं सच्चिदानन्द घन ब्रह्म ने अपने मुख कमल से बोली वाणी में विस्तार के साथ कहा है, वह तत्वज्ञान है। जिसे जानकर साधक सर्व पापों से
मुक्त हो जाता है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में स्पष्ट किया है कि उस तत्वज्ञान को तत्वदर्शी संत जानते हैं, उनको दण्डवत प्रणाम करने से, नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे तत्वज्ञान को जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। वह तत्वज्ञान जिसे ऊपर की वाणी में निर्गुण रासा कहा है, नहीं मिलने से सर्व साधक जन्म-मरण के चक्र में रह गए।
👉प्रमाण सहित अधिक जानकारी के लिए पढ़ें-पवित्र पुस्तक 📚 "ज्ञान गंगा" या
"जीने की राह" और देखें-रोज "तत्वज्ञान का सत्संग" साधना TV पर शाम 07:30 PM से ✅
Comments
Post a Comment