🔅कबीर-माँस भखै औ मद पिये, धन वेश्या सों खाय। जुआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।। जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, वैश्यावृति करते हैं। जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते हैं वह तो महापाप के भागी हैं। जो व्यक्ति मांस खाते हैं वे नरक के भागी हैं। 🔅कबीर परमात्मा कहते हैं माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है। कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय। मुखमें आमिख मेलिके, नरक परंगे जाय।।
♻ "संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान की संघर्ष यात्रा" ♻ ⤵ 🔹संत रामपाल जी महाराज जी की जीवनी ⤵ संत रामपाल जी का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। सन् 1988 में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया। संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्राी में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी। उपदेश दिवस (दीक्षा दिवस) को संतमत में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है। उपरोक्त विवरण श्री नास्त्रोदमस जी की उस भविष्यवाणी से पूर्ण मेल खाता है जो पृष्ठ संख्या 44.45 पर लिखी है। ”जिस समय उस तत्वदृष्टा शायरन का आध्यात्मिक जन्म होगा उस दिन अंधेरी अमावस्या होगी। उस समय उस विश्व नेता की आयु 16, 20, 25 वर्ष नहीं होगी, वह तरुण नहीं होगा, बल्कि वह प्रौढ़ होगा...
"DivinePlay_Of_GodKabir" 🌺 "मीरा बाई को शरण में लेना"!! 🔅परमेश्वर कबीर साहेब कहते हैं कि मैं भक्त आत्माओं को शरण में लेने के लिए सौ छल-छिद्र कर लेता हूँ! गरीबदास जी की भी वाणी है- सौ छल-छिद्र मैं करू, अपने जन के काज। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।। 👉इसी क्रम में मीरा बाई को शरण में लेना! मीरा बाई पहले श्री कृष्ण जी की पूजा करती थी। एक दिन संत रविदास जी तथा परमात्मा कबीर जी का सत्संग सुना तो पता चला कि श्री कृष्ण जी नाशवान हैं। समर्थ अविनाशी परमात्मा अन्य है। संत रविदास जी को गुरू बनाया। फिर अंत में कबीर जी को गुरू बनाया। तब मीरा बाई जी का सत्य भक्ति का बीज बोया गया। गरीब, मीरां बाई पद मिली, सतगुरु पीर कबीर। देह छतां ल्यौ लीन है, पाया नहीं शरीर।।
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